सुना है अपनी कब्र पर चला जा रहा हूं
इसी बीच भीड़ को जमा करें जा रहा हूं
रोते हुए हुजूम को देखकर नींद में मुस्कुराते हुए जा रहा हूं
सोचा है यह हाल तो सबका होगा हाल-ए-दिल सब को सुनाए जा रहा हूं
कंधों पर उठाए हुए लोगों की धूल से अपनों को भुलाया जा रहा हूं
आना नहीं कब्र पर मेरी कभी मुस्कुराते हुए इस दुनिया को रुक्सत किए जा रहा हूं
आखिरी सलाम.
पुष्पेंद्र कुमार लेखक