बुधवार, 22 मार्च 2017

Very heart touching Story...



एक पाँच छ: साल का मासूम सा बच्चा अपनी छोटी बहन को लेकर मंदिर के एक तरफ कोने में बैठा हाथ जोडकर भगवान से न जाने क्या मांग रहा था ।                         
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कपड़े में मैल लगा हुआ था मगर निहायत साफ, उसके नन्हे नन्हे से गाल आँसूओं से भीग चुके थे ।
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बहुत लोग उसकी तरफ आकर्षित थे और वह बिल्कुल अनजान अपने भगवान से बातों में लगा हुआ था ।

जैसे ही वह उठा एक अजनबी ने बढ़ के उसका नन्हा सा हाथ पकड़ा और पूछा : -
"क्या मांगा भगवान से"
उसने कहा : -                      amazon.in
"मेरे पापा मर गए हैं उनके लिए स्वर्ग,
मेरी माँ रोती रहती है उनके लिए सब्र,
मेरी बहन माँ से कपडे सामान मांगती है उसके लिए पैसे"..
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"तुम स्कूल जाते हो"..?
अजनबी का सवाल स्वाभाविक सा सवाल था ।

हां जाता हूं, उसने कहा ।
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किस क्लास में पढ़ते हो ? अजनबी ने पूछा

नहीं अंकल पढ़ने नहीं जाता, मां चने बना देती है वह स्कूल के बच्चों को बेचता हूँ ।
बहुत सारे बच्चे मुझसे चने खरीदते हैं, हमारा यही काम धंधा है ।
बच्चे का एक एक शब्द मेरी रूह में उतर रहा था ।
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"तुम्हारा कोई रिश्तेदार"
न चाहते हुए भी अजनबी बच्चे से पूछ बैठा ।

पता नहीं, माँ कहती है गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता,
माँ झूठ नहीं बोलती,           amazon.in 
पर अंकल,
मुझे लगता है मेरी माँ कभी कभी झूठ बोलती है,
जब हम खाना खाते हैं हमें देखती रहती है ।
जब कहता हूँ
माँ तुम भी खाओ, तो कहती है मैने खा लिया था, उस समय लगता है झूठ बोलती है ।

बेटा अगर तुम्हारे घर का खर्च मिल जाय तो पढाई करोगे ?
"बिल्कुलु नहीं"

"क्यों"
पढ़ाई करने वाले, गरीबों से नफरत करते हैं अंकल,
हमें किसी पढ़े हुए ने कभी नहीं पूछा - पास से गुजर जाते हैं ।

अजनबी हैरान भी था और शर्मिंदा भी ।

फिर उसने कहा
"हर दिन इसी इस मंदिर में आता हूँ,
कभी किसी ने नहीं पूछा - यहाँ सब आने वाले मेरे पिताजी को जानते थे - मगर हमें कोई नहीं जानता ।

"बच्चा जोर-जोर से रोने लगा"

 अंकल जब बाप मर जाता है तो सब अजनबी क्यों हो जाते हैं ?

मेरे पास इसका कोई जवाब नही था...

ऐसे कितने मासूम होंगे जो हसरतों से घायल हैं ।
बस एक कोशिश कीजिये और अपने आसपास ऐसे ज़रूरतमंद यतीमों, बेसहाराओ को ढूंढिये और उनकी मदद किजिए .........................

मंदिर मे सीमेंट या अन्न की बोरी देने से पहले अपने आस - पास किसी गरीब को देख लेना शायद उसको आटे की बोरी की ज्यादा जरुरत हो ।

आपको पसंद आऐ तो सब काम छोडके ये मेसेज कम से कम एक या दो गुरुप मे जरुर डाले ।
कहीं गुरुप मे ऐसा देवता ईन्सान मिल जाऐ ।
कहीं एसे बच्चो को अपना भगवान मील जाए ।
कुछ समय के लिए एक गरीब बेसहारा की आँख मे आँख डालकर देखे, आपको क्या महसूस होता है ।

फोटो या विडीयो भेजने कि जगह ये मेसेज कम से कम एक या दो गुरुप मे जरुर डाले ।

 स्वयं में व समाज में बदलाव लाने के प्रयास जारी रखें ।

फागुन के महीने

कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत?
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।
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चूड़ी भरी कलाइयाँ, खनके बाजू-बंद,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छंद।
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फीके सारे पड़ गए, पिचकारी के रंग,
अंग-अंग फागुन रचा, साँसें हुई मृदंग।
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धूप हँसी बदली हँसी, हँसी पलाशी शाम,
पहन मूँगिया कंठियाँ, टेसू हँसा ललाम।
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कभी इत्र रूमाल दे, कभी फूल दे हाथ,
फागुन बरज़ोरी करे, करे चिरौरी साथ।
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नखरीली सरसों हँसी, सुन अलसी की बात,
बूढ़ा पीपल खाँसता, आधी-आधी रात।
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बरसाने की गूज़री, नंद-गाँव के ग्वाल,
दोनों के मन बो गया, फागुन कई सवाल।
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इधर कशमकश प्रेम की, उधर प्रीत मगरूर,
जो भीगे वह जानता, फागुन के दस्तूर।
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पृथ्वी, मौसम, वनस्पति, भौरे, तितली, धूप,
सब पर जादू कर गई, ये फागुन की धूल।
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फागुन का रंग और नशा सब पर चढ़ जाये

हुस्न या नसीब

एक   हसीन   लडकी
राजा  के  दरबार   में
डांस   कर  रही   थी...
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( राजा   बहुत   बदसुरत   था )

 लडकी   ने   राजा   से   एक
 सवाल   की  इजाजत  मांगी
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राजा   ने  कहा ,
                     " चलो  पुछो ."
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लडकी   ने   कहा ,
   "जब    हुस्न   बंट   रहा   था
      तब   आप   कहां  थे..??
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राजा   ने   गुस्सा   नही  किया
बल्कि
मुस्कुराते   हुवे   कहा
   जब   तुम   हुस्न   की
    लाइन्   में   खडी
     हुस्न    ले   रही   थी , 

   तो   में
  किस्मत  की   लाइन  में  खडा
             किस्मत  ले  रहा  था
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          और   आज
     तुझ  जैसीे   हुस्न   वालीयां
      मेरी  गुलाम   की   तरह
       नाच   रही   है...........
.
इसलीय  शायर  खुब  कहते  है,
.
    " हुस्न   ना   मांग
      नसीब   मांग   ए   दोस्त ,
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       हुस्न   वाले   तो
      अक्सर   नसीब   वालों  के
      गुलाम   हुआ   करते   है...

      " जो   भाग्य   में   है ,
        वह   भाग   कर  आएगा,
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         जो   नहीं   है ,
         वह   आकर   भी
         भाग   जाएगा....!!!!!."
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यहाँ   सब   कुछ   बिकता   है ,
दोस्तों  रहना  जरा  संभाल  के,

बेचने  वाले  हवा भी बेच देते है,
      गुब्बारों   में   डाल   के,
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        सच   बिकता   है ,
        झूट   बिकता   है,
       बिकती   है   हर   कहानी,
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       तीनों  लोक  में  फेला  है ,
       फिर   भी   बिकता   है
       बोतल  में  पानी ,
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कभी फूलों की तरह मत जीना,
जिस   दिन  खिलोगे ,
टूट  कर  बिखर्र  जाओगे ,
जीना  है  तो
पत्थर   की   तरह   जियो ;
जिस   दिन   तराशे   गए ,
" भगवान " बन  जाओगे...!!!!
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बंद कर दिया सांपों को सपेरे ने यह कहकर,
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अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा।
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आत्महत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर,
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अब इंसान से ज्यादा मैं रंग नहीं बदल सकता!
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गिद्ध भी कहीं चले गए, लगता है उन्होंने देख लिया,
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कि इंसान हमसे अच्छा नोंचता है!

कुत्ते कोमा में चले गए, ये देखकर,

क्या मस्त तलवे चाटता है इंसान!

कोई टोपी, तो कोई अपनी पगड़ी बेच देता है,

मिले अगर भाव अच्छा, जज भी कुर्सी बेच देता है!

जला दी जाती है ससुराल में अक्सर वही बेटी,

जिसकी खातिर बाप किडनी बेच देता है!

ये कलयुग है, कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीं इसमें,

कली, फल, फूल, पेड़, पौधे सब माली बेच देता है!

धन से बेशक गरीब रहो, पर दिल से रहना धनवान,

अक्सर झोपड़ी पे लिखा होता है: "सुस्वागतम"

और महल वाले लिखते हैं:
"कुत्तों सॆ सावधान"

विद्युत विभाग( कविता)

बड़ी मेहनत के बाद मैंने *विद्युत विभाग * की नौकरी पायी है, विद्युत विभाग में आया तो जाना, यहाँ एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खाई है।

जहाँ कदम कदम पर ज़ि ल्लत, और घड़ी घड़ी पर ताने हैं,

यहाँ मुझे अपनी ज़िन्दगी के कई साल बिताने हैं।

अपनी गलती ना हो लेकिन क्षमा याचना हेतु हाथ फैलाने हैं.

फ़िर भी बात-बात पे चार्जशीट और पनिसमेन्ट ही पाने हैं.

जानता हूँ ये 'अग्निपथ' है, फिर भी मैं चलने वाला हूँ,

क्योंकि मैं विद्युत विभाग का कर्मचारी हूँ।

जहाँ एक तरफ मुझे प्रशासन की, और दूसरी तरफ पब्लिक की भी सुननी है,

यानी मुझे दो में से एक नहीं, बल्कि दोनों राह चुननी हैं।

ड्यूटी अगर लेट हुयी तो अधिकारी चिल्लाते हैं.

गलती चाहे किसी भी की भी हो सजा तो हम ही पाते हैं.

दो नावों पे सवार हूँ फिर भी सफ़र पूरा करने वाला हूँ,

क्योंकि मैं विद्युत विभाग  का कर्मचारी हूँ।

आसान नहीं है सबको एक साथ खुश रख पाना,

परिवार के साथ वक़्त बिताना, और _विद्युत विभागमें jobबचाना।

परिवार के साथ बमुश्किल कुछ वक़्त ही बिता पाता हूँ,

घर जैसे कोई मुसाफिर खाना हो, वहां तो बस आता और जाता हूँ।

फिर भी हर मोड़ पर मैं अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने वाला हूँ,

क्योंकि मैं विद्युत विभाग  का कर्मचारी हूँ

सेवंथ कमीशन की बात पर, हमें सालो लटकाया जाता है,

हक़ की बात करने पर ठेंगा दिखलाया जाता है।

ये एक लड़ाई है, इसमें सबको साथ लेकर चलने वाला हूँ,

क्योंकि मैं विद्युत विभाग  का कर्मचारी  हूँ।

 देश के कोने कोने से आये लोगों ने, जहाँ विद्युत विभाग  कर्मचारी को अपना दुश्मन समझ लिया,

छुट्टी मिली ना घर जा सके, Duty में ही ईद-दिवाली-क्रिसमस मना लिया,

टिफ़िन से टिफ़िन जब मिलते हैं, तो एक नया ही ज़ायका बन जाता है,

खुद के बनाये खाने में, और घर के खाने में फ़र्क़ साफ़ नज़र आता है।

मजबूरी ने इतना कुछ सिखाया, आगे भी बहुत कुछ सीखने वाला हूँ,

क्योंकि मैं विद्युत विभाग  का कर्मचारी हूँ
 लोग समझते है कि बड़ा मजा करते है, विद्युत विभाग की नौकरी में

 अब उन्हें कौन समझाए , विद्युत विभाग  के  कर्मचारी के लिए सरकार के पास सिर्फ वादे है,

पब्लिक चाहे मनमानी करे, स्टाफ के लिए बड़े सख्त कायदे हैं।

सबको मैं बदल नहीं सकता, इसलिए अब ख़ुद को बदलने वाला हूँ,

क्योंकि मैं विद्युत विभाग  का कर्मचारी हूँ।

                                                               ये कविता मेरे समस्त विद्युत विभाग कर्मियो को समर्पित है।