मंगलवार, 9 मई 2017

माँ-बाप हमारे लिये

जब एक शख्स लगभग पैंतालीस वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परन्तु उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि पुत्र के रूप में पत्नी की दी हुई भेंट मेरे पास हैं, इसी के साथ पूरी जिन्दगी अच्छे से कट जाएगी। पुत्र जब वयस्क हुआ तो पूरा कारोबार पुत्र के हवाले कर दिया। स्वयं कभी अपने तो कभी दोस्तों के आॅफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे। पुत्र की शादी के बाद वह ओर अधिक निश्चित हो गये। पूरा घर बहू को सुपुर्द कर दिया। पुत्र की शादी के लगभग एक वर्ष बाद दोहपर में खाना खा रहे थे, पुत्र भी लंच करने ऑफिस से आ गया था और हाथ–मुँह धोकर खाना खाने की तैयारी कर रहा था। उसने सुना कि पिता जी ने बहू से खाने के साथ दही माँगा और बहू ने जवाब दिया कि आज घर में दही उपलब्ध नहीं है। खाना खाकर पिताजी ऑफिस चले गये। थोडी देर बाद पुत्र अपनी पत्नी के साथ खाना खाने बैठा। खाने में प्याला भरा हुआ दही भी था। पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खाना खाकर स्वयं भी ऑफिस चला गया। कुछ दिन बाद पुत्र ने अपने पिताजी से कहा- ‘‘पापा आज आपको कोर्ट चलना है, आज आपका विवाह होने जा रहा है।’’ पिता ने आश्चर्य से पुत्र की तरफ देखा और कहा-‘‘बेटा मुझे पत्नी की आवश्यकता नही है और मैं तुझे इतना स्नेह देता हूँ कि शायद तुझे भी माँ की जरूरत नहीं है, फिर दूसरा विवाह क्यों?’’ पुत्र ने कहा ‘‘ पिता जी, न तो मै अपने लिए माँ ला रहा हूँ न आपके लिए पत्नी, मैं तो केवल आपके लिये दही का इन्तजाम कर रहा हूँ। कल से मै किराए के मकान मे आपकी बहू के साथ रहूँगा तथा आपके ऑफिस मे एक कर्मचारी की तरह वेतन लूँगा ताकि आपकी बहू को दही की कीमत का पता चले।’’ 👌Best message👌 -माँ-बाप हमारे लिये ATM कार्ड बन सकते है, तो ,हम उनके लिए Aadhar Card तो बन ही सकते है।

शूद्र को ज्ञान प्राप्त

महाभारत"कहती है - शूद्र राजा नहीं बन सकता। "गीता" कहती है - शूद्र को ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यों की गुलामी करनी चाहिए "रामायण" कहती है - शूद्र को ज्ञान प्राप्त करने पर मृत्युदंड मिलना चाहिए । "वेद" कहते है कि शूद्र ब्रह्मा के पैरोँ से पैदा हुआ है इसिलिये वो नीच है । "मनुस्मृति" के अनुसार - शूद्र का कमाया धन ब्राह्मण को बलात् छीन लेना चाहिए । "वेद" कहते है - शूद्र का स्थान ऊपर के तीनों वर्णों के चरणों में है । "पुराण" कहते हैं - शूद्र केवल गुलामी के लिए जन्म लेते हैं । "रामचरित मानस" कहती है - शूद्र को पीटना धर्म है । फिर भी एक सहनशील "शूद्र" अब भी इन हिंसक धर्म ग्रंथो को सीने से लगाए फिरता है ! यकीन मानिये, यही आपकी गुलामी का कारण हैं । - डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर

मोदी जी से हाँथ जोड़कर फौजी भाइयों की विनती है

मोदी जी से हाँथ जोड़कर फौजी भाइयों की विनती है मत छुट्टी दो, मत भत्ता दो, बस काम यही अब करने दो, वेतन आधा कर दो, लेकिन कुत्तों में गोली भरने दो, हर हर मोदी घर घर मोदी, यह नारा सिर के पार गया, इक दो कौड़ी का जेहादी, सैनिक को थप्पड़ मार गया, थप्पड़ खाएं गद्दारों के, हम इतने भी मजबूर नही, हम भारत माँ के सैनिक हैं कोई बंधुआ मजदूर नहीं, अब और नही लाचार करो, हम जीते जी मर जायेंगे, दर्पण में देख न पाएंगे, निज वर्दी पर शर्मायेंगे, या तो कश्मीर उन्हें दे दो, या आर पार का काम करो, सेना को दो ज़िम्मेदारी, तुम दिल्ली में आराम करो, इस राजनीती ने घाटी को सरदर्द बनाकर छोड़ा है, भारत के वीर जवानों को नामर्द बना कर छोड़ा है, भारत का आँचल स्वच्छ रहे, हम दागी भी हो सकते है, दिल्ली गर यूँ ही मौन रही, हम बागी भी हो सकते हैं, ✍🏻🐣 (एक माँ कश्मीर मे पिटने वाले फौजी बेटे से) फोन किया माँ ने बेटे को तूने नाक कटाई है, तेरी बहना से सब कहते बुजदिल तेरा भाई है! ऐसी भी क्या मजबुरी थी ऐसी क्या लाचारी थी, कुछ कुत्तो की टोली कैसे तुम शेरो पर भारी थी! वीर शिवा के वंशज थे तुम चाट क्यु ऐसे धुल गए, हाथो मे हथियार तो थे क्यु उन्हें चलाना भूल गये! गीदड़ बेटा पैदा कर के मैने कोख लजाई है, तेरी बहना से सब कहते बुजदिल तेरा भाई है!! (लाचार फौजी अपनी माँ से) इतना भी कमजोर नही था माँ मेरी मजबुरी थी, उपर से फरमान यही था चुप्पी बहुत जरूरी थी! सरकारे ही पिटवाती है हम को इन गद्दारो से, गोली का आदेश नही है दिल्ली के दरबारो से! गिन-गिनकर मैं बदले लूँगा कसम ये मैंने खाई है, तू गुड़िया से कह देना ना बुजदिल तेरा भाई है!!

पचास वर्ष की उम्र में निकाले जाने पर

जब कर्मचारियों,अधिकारियों एवं शिक्षकों को पचास वर्ष की उम्र में निकाले जाने पर सरकार द्वारा विचार किया जा सकता हैं तो क्यों नहीं निम्नलिखित विचार जनहित में किया जाय । 1-नेताओं को भी पचास साल की उम्र में रिटायर कर दिया जाय ? 2-क्यों नहीं नेताओं को भी पुरानी पेंशन से वंचित किया जाय ? 3-क्यों नहीं नेताओं को विधानसभा सदस्य बनने के लिए स्नातक व लोकसभा सदस्य बनने के लिए परास्नातक होना अनिवार्य किया जाय ? 4- क्यों नहीं कानून मंत्री बनने के लिए LAW की डिग्री अनिवार्य हो,स्वास्थ्य मंत्री बनने के MBBS की डिग्री अनिवार्य हो,समाज कल्याण के लिए समाजशास्त्र की डिग्री अनिवार्य हो,मानव संसाधन के लिए M.ED की डिग्री अनिवार्य हो,वित्त मंत्री के अर्थशास्त्री होना अनिवार्य हो इसी प्रकार सभी मंत्रीयों की योग्यता का मानक निर्धारित किया जाय । 5- क्यों नहीं फ्री का डीजल,पेट्रोल,फोन की सुविधा,हवाई सुविधा,रेल सुविधा सहित तमाम सुविधाओं में जिसमें प्रतिवर्ष अरबों रूपये खर्च होता हैं उसमें कटौती की जाय । 6-क्यों नहीं सभी नेताओं के खाते सार्वजनिक किये जाय । 7-क्यों नहीं नेताओं की पुरानी पेंशन,मोटी तनख्वाह,सब्सिडी द्वारा भोजन बंद किया जाय जिसपर सरकार प्रतिवर्ष अरबों रूपये पानी की तरह खर्च करती हैं । 8-क्यों नहीं नेताओं के पद से हटने के बाद फ्री मेडिकल सुविधा बंद किया जाय जिस पर देश का करोड़ों रूपये नुकसान होता हैं । 9-क्या 50 साल का कर्मचारी बूढ़ा और 50 साल का नेता जवान होता हैं ?यह कौन सा मानक हैं ?नेताओं के पास क्या राहु व केतु वाला अमृत कलश हैं क्या ?जिससें यह पचास की उम्र में युवा नेता हो जाते हैं ? देश को कितना गर्त में आप नेताजी लोग ले जायेंगे?जब स्वयं का तनख्वाह लाखों में करते हैं तो सभी पार्टियों के कोई भी नेता विरोध नहीं करता सभी मिलकर मेज थपथपा देते हैं ।क्या देश पर आप की तनख्वाह की बेतहाशा वृद्धि से अरबों रूपये का भार नहीं पडता ?गजब की सोच हैं आप नेताओं की जब कर्मचारियों,अधिकारियों,शिक्षकों को पचास वर्ष में हटाने पर विचार किया जा सकता तो यह उपरोक्त चीजें क्यों नहीं किया जा सकता हैं ।

Cockroach Theory

Cockroach Theory A beautiful speech by Sundar Pichai - an IIT-MIT Alumnus : The cockroach theory for self development At a restaurant, a cockroach suddenly flew from somewhere and sat on a lady. She started screaming out of fear. With a panic stricken face and trembling voice, she started jumping, with both her hands desperately trying to get rid of the cockroach. Her reaction was contagious, as everyone in her group also got panicky. The lady finally managed to push the cockroach away but ...it landed on another lady in the group. Now, it was the turn of the other lady in the group to continue the drama. The waiter rushed forward to their rescue. In the relay of throwing, the cockroach next fell upon the waiter. The waiter stood firm, composed himself and observed the behavior of the cockroach on his shirt. When he was confident enough, he grabbed it with his fingers and threw it out of the restaurant. Sipping my coffee and watching the amusement, the antenna of my mind picked up a few thoughts and started wondering, was the cockroach responsible for their histrionic behavior? If so, then why was the waiter not disturbed? He handled it near to perfection, without any chaos. It is not the cockroach, but the inability of those people to handle the disturbance caused by the cockroach, that disturbed the ladies. I realized that, it is not the shouting of my father or my boss or my wife that disturbs me, but it's my inability to handle the disturbances caused by their shouting that disturbs me. It's not the traffic jams on the road that disturbs me, but my inability to handle the disturbance caused by the traffic jam that disturbs me. More than the problem, it's my reaction to the problem that creates chaos in my life. Lessons learnt from the story: I understood, I should not react in life. I should always respond. The women reacted, whereas the waiter responded. Reactions are always instinctive whereas responses are always well thought of. A beautiful way to understand............LIFE. Person who is HAPPY is not because Everything is RIGHT in his Life.. He is HAPPY because his Attitude towards Everything in his Life is Right..!!

ठाकुर और दलित




एक कहानी सुनी थी कि किसी गांव में एक ठाकुर और एक दलित बचपन


के दोस्त थे। ठाकुर पढ़ाई में कमजोर था तो गांव में ही रह गया और 


दलित लड़का काफी होशियार था और शहर में बड़ा अफ़सर बन गया। एक 


दिन वह गांव में अपने ठाकुर दोस्त से मिला और कहा कि देखो कि मैं 


अब अफ़सर बन गया हूँ और तुम में और मुझ में अब कोई अंतर नहीं है। 


यह सुनकर ठाकुर ने दलित को एक थप्पड़ मारा। अफ़सर थप्पड़ खाकर


आश्चर्य से ठाकुर को देखने लगा। तब ठाकुर ने कहा कि देखो मैंने 


अन पढ़ रहकर भी तुम्हें थप्पड़ मारा और तुम पढ़ लिख कर अफ़सर


बनकर भी उस थप्पड़ का जवाब नहीं दे पाए, इसलिए तुम और मैं कभी 


बराबर नहीं हो सकते।


यह कहानी सुनकर मैं कई दिनों तक सोचता रहा कि ऐसा क्यों हुआ? तब


जवाब के रूप में पिताजी की बचपन में बताई एक बात याद आई। गाँव में 


हमारा एक छोटा सा घर था। जब उसे दो मंजिल बनाया गया तो मैंने पूछा 


कि इसे और ऊंचा बना लो तो पिताजी ने कहा कि जब आस पास के 


मकान भी बन जाएंगे तब बनाएंगे ताकि हमारे मकान को सपोर्ट मिल 


सके। अगर हमने अपना मकान चार मंजिला बना लिया और तीनों ओर 


के मकान नहीं बने तो हवा और भूकंप में हमारे मकान को भी खतरा हो


सकता है। यही बात उस दलित अफ़सर के साथ भी हुई। वह खुद तो 


अफसर बन गया लेकिन उसके आस पास उसका सपोर्ट नहीं था। इसलिए


सभी दलित जो आर्थिक, शैक्षिक व राजनैतिक रूप से मजबूत हुए हैं, 


उन्हें अपने आस पास अपने लोगों को सपोर्ट के रूप में मजबूत ज़रूर


करना चाहिए वरना हम कुछ झटके खाते ही वापस वहीँ पहुँच जायेंगे जहाँ


से चले थे