मंगलवार, 10 जनवरी 2017

आत्मविश्वास की नई ताकत


  • यह कहानी मेरी खुद की है मेरा नाम संजीव है मेरे पिताजी का देहांत जब हो गया था जब मैं बहुत छोटा था घर में मेरी मां और दो छोटे भाई थे मेरे घर का पालन पोषण मजबूरी से होता था लेकिन मैं पढ़ना चाहता था घर की माली हालत खराब होने के कारण मुझे मजबूरी करनी पड़ती थी सुबह उठकर मैं पहले एक पंडित जी के अखबार डालता था फिर मजबूरी के लिए पुलिया पर जाता था पुलिया तो आप जानते ही होंगे कि क्या होती है यहां पर मजदूरों को काम मिलता है वहां से मैंने काम करना शुरू किया सबसे पहले मैंने एक ठेकेदार के यहां पर काम किया जिसने चेक डैम का काम ले रखा था वहां से मैंने काम करना शुरू किया लेकिन मैं पढ़ना चाहता था काम की वजह से मैं पढ़ नहीं पाता था फिर भी जब कभी काम की छुट्टी होती थी या काम के बाद मुझे वक्त मिलता था तो मैं पढ़ लेता था मैं पढ़ने में बहुत अच्छा नहीं था लेकिन मन में पढ़ने की इच्छा बहुत होती थी मां कहती थी कि पढ़ाई से जिंदगी बन जाती है और कोई भी व्यक्ति गरीब पैदा होता है लेकिन जरुरी नहीं कि वह गरीब मर जाए यही शब्द मेरी मां के मुझे बहुत हिम्मत देते थे जिसके कारण मुझे पढ़ाई में दिलचस्पी बनी रही और मजबूरी के साथ-साथ मैंने पढ़ाई को कभी नहीं छोड़ा मैंने बड़ी मुश्किल से हाई स्कूल की पढ़ाई पास की जब मैंने हाई स्कूल की परीक्षा पास कर ली उसके बाद मैंने पॉलिटेक्निक करने की मन में सोची लेकिन दुर्भाग्य के कारण मैंने पॉलिटेक्निक नहीं कर पाया जिस समय मैं पॉलिटेक्निक के फॉर्म भरने के लिए पॉलिटेक्निक गया उस समय फार्म भरने का समय खत्म हो चुका था लेकिन उसी समय आईटीआई के फॉर्म मिल रहे थे फॉर्म भरने का समय था तो मैंने आईटीआई के फॉर्म को खरीद लिया खरीदने के के बाद मैंने फॉर्म को भर लिया और जमा कर दिया परीक्षा का समय आया और मैं परीक्षा देने के लिए गया परीक्षा झांसी मे थी और मैं बबीना में रहता था जो कि झांसी से 26 किलोमीटर दूरी पर था मेरे पास किराए के लिए पैसे भी नहीं थे और मालिक से पैसे मांगे तो उसने पूछा कि पैसे किस लिए चाहिए कल ही तो मैंने खर्चे के लिए पैसे दिए थे मैंने कहा साहब कल मेरी परीक्षा है आईटीआई की तो मालिक ने कहा पढ़ लिख कर क्या करेगा पढ़ लिख कर किसी का भला हुआ है क्या जा काम कर काम और उन्होंने मुझे पैसे नहीं दिए मैंने सोचा अब मैं परीक्षा देने के लिए कैसे जाऊंगा तो मैंने अपने मित्र से पैसे मांगे तो उसके पास भी पैसे नहीं थे मैंने सोचा कि मुझे यह परीक्षा किसी भी हालत में देनी है मैंने अपने पिताजी की साइकिल उठाई जोकि बहुत ही पुरानी जंग खाई थी उसी से मैं झांसी परीक्षा देने गया परीक्षा देने के बाद रोज की तरह अपने कामों में लग गया उस समय बहुत ही काम मदना चल रहा था तो मैं जंगल चला जाता था जहां पर मैं घंटो बैठ कर अपने भविष्य के बारे में सोचा करता था सोचते सोचते एक दिन मेरे दिमाग में मुझे एक तरकीब आई मैंने जंगल में बांस के पेड़ों को देखा और उन पेड़ों को काट कर उनसे चली और बांस के डंडे और लठ तैयार किए उनको किरायों पर चलाने लगा सबसे पहले मैंने 10 चली 20 फुट के 15 बांस तैयार किए इसी से मैंने अपना छोटा सा कारोबार शुरु किया लेकिन मैं काम नहीं करना चाहता था लेकिन घर की हालत सही नहीं थी इसीलिए मुझे काम करना पड़ रहा था मेरी उम्र करीम उस समय साढे 14 साल थी मैं पढ़ना चाहता था उसी समय मेरा आईटीआई का परीक्षाफल आ गया मैंने सोचा जब इतने पढ़ने वाले बच्चों का आईटीआई में नहीं होता तो मेरा आईटीआई में कैसे हो जाएगा और मैंने अपना परीक्षाफल नहीं देखा और रोज की तरह अपने काम में लग गया परीक्षाफल निकलने के 2 दिन बाद साइड पर काम कर रहा था तो मेरे मित्र ने मुझसे पूछा तेरी आईटीआई का परीक्षा का फल निकल आया है तूने देखा है क्या मैंने भी बे मन से कहा मैंने अपनी आईटीआई का परीक्षा फल नहीं देगा क्योंकि मैं पढ़ाई में इतना अच्छा नहीं हूं और बच्चे कितना पढ़ते हैं जब उनका नहीं हुआ तो मेरा कैसे होगा तो मेरे मित्र ने कहा चलो देखते हैं कि तेरा हुआ है या नहीं मैंने सोचा की चलो देखते हैं कि मेरा हुआ है कि नहीं मन में तो था कि मेरा आईटीआई में नहीं होगा पहले मैंने देखा मुझे मेरा रोल नंबर नहीं दिखाई दिया मैंने कहा था ना मेरा आईटीआई में नहीं होगा मेरे मित्र ने कहा जरा मुझे अखबार दिखाना मैं देखता हूं जब मेरे मित्र ने अखबार को उठाया और देखा तो उसमें मेरा रोल नंबर और ट्रेन कोड लिखा था मेरे दोस्त ने मुझसे कहा तेरे को देखना नहीं आता यह किसका रोल नंबर है मैंने देखा और देखते ही साथ मेरी आंखों में आंसू भर आए मैंने कहा कि यह कैसे हो गया मुझे यकीन नहीं हो रहा था मेरा नाम आईटीआई में आ गया उसके एक हफ्ते बाद आईटीआई से कॉल लेटर आया जिसमें लिखा था आपका सलेक्शन औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में 07 इलेक्ट्रीशियन ट्रेड में हो गया है अपने समस्त दस्तावेजों को लेकर आईटीआई मैं लेकर आए  
  • मैं फिर परेशान हो गया क्योंकि आईटीआई झांसी में था जब परीक्षा के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे तो आईटीआई जाने के लिए, आईटीआई की फीस ,किताबों के लिए पैसे कहां से आएंगे मैं कॉल लेटर को लेकर सड़क पर बैठ कर रोने लगा सोचने लगा कि मैं आईटीआई में कैसे पढूंगा और मां की कही हुई बातों को कैसे पूरा करुंगा
  • मैंने अपने आप को संभाला और साइकिल लेकर आईटीआई गया आईटीआई में एडमिशन फीस 240 रुपए थी और मेडिकल बाहर से करवा कर लाना था जिस की फीस  ₹200 जबकि स्कूल वालों की तरफ से डॉक्टर था स्कूल वाले सरकारी हॉस्पिटल का मेडिकल स्वीकार नहीं कर रहे थे बस उसी का मेडिकल स्वीकार कर रहे थे मेरे पास तो एक रुपए भी नहीं था उस दिन मैं बिना एडमिशन के घर आ गया और सोचने लगा की अपना एडमिशन कैसे कराएं मैंने सोचा कि अपने मालिक से कुछ पैसे ले लूंगा लेकिन मालिक एडवांस पैसे नहीं देता तो पैसा किससे लूं क्योंकि गरीब को तो कोई भी पैसे नहीं देता मुझे कौन देता मैं बबीना के काली माता के मंदिर गया जोकि आर्मी केंट मैं माना हुआ मंदिर था वहां बैठकर भगवान से प्रार्थना कर रहा था की है भगवान मुझे एडमिशन के लिए पैसे दे दो लेकिन मुझे पैसा देता कौन मैंने देखा काली माता के मंदिर में बढ़ोतरी की थाली में बहुत सारा पैसा रखा है मैंने उन पैसों को उठा लिया उठा और वहां से चला गया मैंने सोचा कि मैं एडमिशन करवा लूंगा लेकिन मेरे मन को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था लग रहा था जैसे मैंने किसी के घर को लूट लिया हो तो मैंने अपनी यह बात अपनी मां को बता दिया मेरी मां ने मुझे जोर से एक चमाट लगाया और कहां यह तूने क्या किया मुझसे कहा होता मैं तुझे पैसे देती करती मैंने मां से कुछ भी नहीं कहा और रोज की तरह काम पर चला गया

शाम को जब मैं घर पर आया तो मेरी मां ने मुझे कहा बेटा कितने पैसे लग रहे हैं एडमिशन में और कितने की आ रही है तेरी किताबें मैंने मां से कहा मां किताबें करीब 1500 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक की आएंगी और एडमिशन में 440 रुपए तक लगेंगे मेरी मां ने मुझे 3000 रुपए दिए और कहा जा कल सुबह जाकर एडमिशन करा लेना मैंने कहा मां सारे पैसे अगर किताबों में और एडमिशन में खर्च कर दूंगी तो घर का खर्च कैसे चलाओगे मां ने कहा बेटा चिंता मत कर सब ऊपरवाला करेगा मुझे उस रात नींद नहीं आई मन में बहुत सी उलझन चल रही थी की मैं पढ़ने जाऊं की घर के खर्च के लिए काम करूं समझ में नहीं आ रहा था सरकार कहती है पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया तो मैं पढ़ना चाहता हूं लेकिन कैसे पढे अगर पढ़ता हूं तो पेड़ जाता है और नहीं पड़ता तो भविष्य जाता है ऐसे में मैं क्या करूं इसी चीज को सोचते सोचते सुबह हो गई मैं उठा नहाया कपड़े पहने और साइकिल उठाकर आईटीआई पहुंचा वहां सबसे पहले मैंने अपना मेडिकल कराया और 200 रुपए दिए उसके बाद अपनी सारे डॉक्यूमेंट की फोटो कॉपी कराने के बाद 240 रुपए देकर अपना एडमिशन करवाया एडमिशन करवाने के बाद मैं झांसी से एक किताब लेकर आया और फिर कॉपी और एक पैन बाकी पैसे मैंने अपनी जेब में रख लिए मैंने सोचा अभी एक ही किताब से काम चला लूंगा बाद में किताब खरीद लूंगा घर पहुंचा और बाकी के पैसे मैंने अपनी मां के हाथ में दे दिए मां ने कहा बेटा एडमिशन हो गया और किताबें खरीद ली मैंने मां से कहा हां मां किताबें खरीद ली एडमिशन हो गया मां ने कहा कल से आईटीआई जाना मैंने मां से कहा ठीक है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें