सोमवार, 28 नवंबर 2016

आज दुनिया कविता

दुनिया बहुत बदल गई दुनिया को क्या कहना है
दुनिया में जो कुछ भी है बस नाम किसी का लेना है

काम अगर हम ना करें तो नाम किसी का लेना है
और काम अगर कोई करे तो नाम अपना लेना है

दुनिया बहुत बदल गई दुनिया से क्या कहना है
दुनिया में जो कुछ भी है बस नाम किसी का लेना है

जिस काम से आंखे नम करोवो काम अभी हमें करना है
|जिस काम से दुनिया है चलेवह काम अभी नहीं करना है

दुनिया बहुत बदल गई दुनिया से क्या कहना है
दुनिया में जो कुछ भी बस नाम किसी का लेना है

जिस काम में भाव है मिले उसे काम को अभी है करना है
जिस काम में भाव ना मिले वह काम अभी नहीं करना है

दुनिया बहुत बदल गई दुनिया से क्या कहना है
दुनिया में जो कुछ भी है बस नाम किसी का लेना है

धोखा झूठ और फरेब बस इनका बोल बाला है
जो सच्चे मन से काम करें बस उसका मुंह काला है

दुनिया बहुत बदल गई दुनिया से क्या कहना है
दुनिया में जो कुछ भी है बस नाम में किसी का लेना है

झूठ में जितना भी बल हो सच से कम ही होता है
सच कितना भी बल कम हो पर झूठ से अधिक होता है


·                                                                                                स्वर्गीय श्री लखन लाल जी के चरणो में अर्पण उनके पुत्र पुष्पेंद्र कुमार की ओर से

जिंदगी कविता

                                             
       

जिंदगी जीने का मकसद खास होना चाहिए
और अपने आप पर विश्वास होना चाहिए
जीवन मैं दुख की कोई कमी नहीं है
बस जीने का अंदाज़ होना चाहिए।


भीगी जिंदगी की मुस्कान से आंसू नहीं मिलते
सोती हुई जिंदगी से इंसान नहीं मिलते
मर गया हो जमीर जिसका
उससे भगवान नहीं मिलते

उठना नहीं चलना है

किसी और के लिए नहीं
अपनों के लिए ही करना हैं
राहों में शूल है इतने शूल पर ही चलना है
गद पद का संघ है शूल से क्या करना है

जिंदगी दुख तो बहुत देती है

अरे बर्दाश्त करने वाला होना चाहिए
विश्वास से जो जिए जिंदगी को वह ऐसा होना चाहिए
जिंदगी में दुख तो आते हैं जाते हैं

उनका सामना करना चाहिए
विश्वास से जो जिंदगी को जिए वह एहसास होना चाहिए
     

                                                                         लेखक                                                                                                पुष्पेंद्र कुमार

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

सोने दो कविता





सोती है जिंदगी तो सोने दो रोती है जिंदगी तो रोने दो
इतिहास के पन्नों पर जिंदगी को ऐसे ही चलने दो
आंखो में लाखों सपने हैं सपने में जिंदगी को चलने दो
कोई और करेगा पूरा इनको इनकी यादों में ही चलने दो
सोती है जिंदगी तो सोने दो रोटी है जिंदगी तो रोने दो

मर गया हो जमीर जिसका अब उसी को तो रोने दो
जो सोता है उसे सोने दो जो होता है उसे होने दो
उठना नहीं कहना मगर करने से हमेशा डरना है
हम नहीं तुम नहीं तुमसे क्या कहना है
सोती है जिंदगी तो सोने दो रोटी है जिंदगी तो रोने दो

आशाओं के चक्कर से बाहर तो आओ ना कुछ काम करना है
मिलकर यह तो बतलाओ ना
कुछ तुम करो कुछ हम करेंगे यह काम हम कोई करना है
सोती है जिंदगी तो सोने दो रोती है
जिंदगी तो रोने दो इसको ही तो हम को बदलना है

पुष्पेंद्र कुमार।
लेखक