गुरुवार, 24 नवंबर 2016

सोने दो कविता





सोती है जिंदगी तो सोने दो रोती है जिंदगी तो रोने दो
इतिहास के पन्नों पर जिंदगी को ऐसे ही चलने दो
आंखो में लाखों सपने हैं सपने में जिंदगी को चलने दो
कोई और करेगा पूरा इनको इनकी यादों में ही चलने दो
सोती है जिंदगी तो सोने दो रोटी है जिंदगी तो रोने दो

मर गया हो जमीर जिसका अब उसी को तो रोने दो
जो सोता है उसे सोने दो जो होता है उसे होने दो
उठना नहीं कहना मगर करने से हमेशा डरना है
हम नहीं तुम नहीं तुमसे क्या कहना है
सोती है जिंदगी तो सोने दो रोटी है जिंदगी तो रोने दो

आशाओं के चक्कर से बाहर तो आओ ना कुछ काम करना है
मिलकर यह तो बतलाओ ना
कुछ तुम करो कुछ हम करेंगे यह काम हम कोई करना है
सोती है जिंदगी तो सोने दो रोती है
जिंदगी तो रोने दो इसको ही तो हम को बदलना है

पुष्पेंद्र कुमार।
लेखक



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