रविवार, 7 मई 2017

"नीकाह" और "जनाजा"

तेरी डोली उठी
मेरी मय्यत उठी
फूल तुझ पर भी बरसे
फूल मुझ पर भी बरसे
फर्क सिर्फ इतना सा था
कि तू सज गयी
ओर
मुझे सजाया गया
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तू भी घर को चली
मैं भी घर को चला
फर्क सिर्फ इतना सा था
तू उठ कर गयी
ओर
मुझे उठाया गया
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महफिल वहां भी थी
लोग यहां भी थे
फर्क सिर्फ इतना सा था
उनका हंसना वहां
इनका रोना यहां
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काजी उधर भी था
मौलवी इधर भी था
दो बोल तेरे पढ़े
दो बोल मेरे पढ़े
तेरा निकाह पढ़ा
मेरा जनाजा पढ़ा
फर्क सिर्फ इतना सा था
तुझे अपनाया गया
मुझे दफनाया गया

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