एक कहानी सुनी थी कि किसी गांव में एक ठाकुर और एक दलित बचपन
के दोस्त थे। ठाकुर पढ़ाई में कमजोर था तो गांव में ही रह गया और
दलित लड़का काफी होशियार था और शहर में बड़ा अफ़सर बन गया। एक
दिन वह गांव में अपने ठाकुर दोस्त से मिला और कहा कि देखो कि मैं
अब अफ़सर बन गया हूँ और तुम में और मुझ में अब कोई अंतर नहीं है।
यह सुनकर ठाकुर ने दलित को एक थप्पड़ मारा। अफ़सर थप्पड़ खाकर
आश्चर्य से ठाकुर को देखने लगा। तब ठाकुर ने कहा कि देखो मैंने
अन पढ़ रहकर भी तुम्हें थप्पड़ मारा और तुम पढ़ लिख कर अफ़सर
बनकर भी उस थप्पड़ का जवाब नहीं दे पाए, इसलिए तुम और मैं कभी
बराबर नहीं हो सकते।
यह कहानी सुनकर मैं कई दिनों तक सोचता रहा कि ऐसा क्यों हुआ? तब
जवाब के रूप में पिताजी की बचपन में बताई एक बात याद आई। गाँव में
हमारा एक छोटा सा घर था। जब उसे दो मंजिल बनाया गया तो मैंने पूछा
कि इसे और ऊंचा बना लो तो पिताजी ने कहा कि जब आस पास के
मकान भी बन जाएंगे तब बनाएंगे ताकि हमारे मकान को सपोर्ट मिल
सके। अगर हमने अपना मकान चार मंजिला बना लिया और तीनों ओर
के मकान नहीं बने तो हवा और भूकंप में हमारे मकान को भी खतरा हो
सकता है। यही बात उस दलित अफ़सर के साथ भी हुई। वह खुद तो
अफसर बन गया लेकिन उसके आस पास उसका सपोर्ट नहीं था। इसलिए
सभी दलित जो आर्थिक, शैक्षिक व राजनैतिक रूप से मजबूत हुए हैं,
उन्हें अपने आस पास अपने लोगों को सपोर्ट के रूप में मजबूत ज़रूर
करना चाहिए वरना हम कुछ झटके खाते ही वापस वहीँ पहुँच जायेंगे जहाँ
से चले थे।
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