शुक्रवार, 5 मई 2017

बर्बरता ( कविता)

 या तो कश्मीर उन्हें दे दो,या आर पार का काम करो,
सेना को दो ज़िम्मेदारी,तुम दिल्ली में आराम करो,

हर हर मोदी घर घर मोदी,यह नारा सिर के पार गया, इक दो कौड़ी का जेहादी,सैनिक को थप्पड़ मार गया,

थप्पड़ खाएं गद्दारों के,हम इतने भी मजबूर नही, हम भारत माँ के सैनिक हैं,कोई बंधुआ मजदूर नहीं,

भारत का आँचल स्वच्छ रहे ,हम दागी भी हो सकते है, दिल्ली गर यूँ ही मौन रही,हम बागी भी हो सकते हैं

इस राजनीती ने घाटी को,सरदर्द बनाकर छोड़ा है, भारत के वीर जवानों को नामर्द बना कर छोड़ा है,

इस नौबत को लाने वालों,थोड़ा सा शर्म किये होते, तुम काश्मीर में सैनिक बन,केवल इक दिवस जिए होते,

अब और नही लाचार करो,हम जीते जी मर जायेंगे, दर्पण में देख न पाएंगे,निज वर्दी पर शर्मायेंगे,

रंगा है खुन से आज नक्सलीयों ने माटी को दमे का रोग लग गया है क्या 56 ईंच की छाती को

दिल्ली में बैठे शेरों को सत्ता का लकवा मार गया, इस राजनीति के चक्कर में सैनिक का साहस हार गया,

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